कोल्ड्रिंकस के नुक़सान।( Loss of cold drink)
क्या आप भी कोल्ड्रिंकस के शौक़ीन हैं?
Loss of Cold drink |
क्याआप कोल्ड्रिंक शौक़ से पीते हैं अगर जवाब "हां" में है तो ठहरिये! पहले इसकी तबाह कारियों पर एक सरसरी नज़र डाल लीजिये फिर वोह फ़ैसला कीजिये, जिसमें आप के लिए दुनिया और आख़िरत की भलायां हों। कोल्ड्रिंक का सबसे बड़ा जुज़ (Part) मिठास है।
मिठास या तो शकर से हासिल की जाती है या सकरीन से जो कि सफ़ेदरंग का मस़नूई सुफ़ूफ़ (नक़ली पाउडर ) है और शकर से तकरीबन 300 से लेकर 500 गुना मीठा होता है! जिन बोतलों में चीनी स्तेमाल की जाती है उनमें चीनी की मिक़दार(मात्रा) काफ़ी ज़्यादा होती है।
जैसा कि फ़ैज़ाने सुन्नत जिल्द:1 स-फ़हा 712 पर है:
250 मिली लीटर की एक बोतल में तक़रीबन सात चम्मच चीनी होती है। चीनी वाली कोल्ड्रिंक पीने से दांतों और हड्डियोंको नुक़सान पंहुचाने ख़ून में शूगर की मिक़दार (मात्रा) बढ़ने, दिल और स्किन के अम्राज़ पैदा होने के इम्कानात बढ़ते हैं,और इससे "मोटापा" भी आता है।
|
सकरीन वाली चीज़ों का स्तेमाल और कैंसर
अमरीकी इदारे F.D.A को सकरीन वाली ग़िज़ाओं के बारे में हज़ारों शिकायत मौसूल हुईं मोहक्क़िक़ीन का ख़याल है कि अमरीकी अवाम में कैंसर की ज़्यादती सकरीन वाली चीज़ों के स्तेमाल की वजह से से है। सकरीन पर तो बाज़ ममालिक में पाबन्दी लगा दी गई है। सकरीन के स्तेमाल से मसाने का कैंसर होने की इत्तिलाआत हैं।दांतों की बर्बादी
कोल्ड्रिंक शकर वाली हो या "शूगर फ़्री" दोनों ही सूरतों में सेहते इन्सानी के लिए नुक़सान देह है। बरतानिया के अन्दर 1992 में बच्चों के दांतों के बारे में किये जाने वाले सर्वे से येह बात सामने आई है कि कोल्ड्रिंक के शौकीन 20% बच्चों के दांतों की हिफ़ाज़ती तह ख़त्म हो चुकी है। चूहों पर तजरिबा किया और उनको कोल्ड्रिंक पिलायी गईं तो चूहों के दांत 6 माह में घिस गये एक "कोल्ड्रिंक की बोतल में इन्सानी दांत रखा गया तो वोह दांत नर्म और भुरभुरा हो गया।
|
हाज़मेे की बर्बादी
ज़ंग आलूद चीज़ें साफ़ करने के लिए स्तेमाल किया जाने वाला "फ़ासफ़ोरिक एसिड" कोल्ड्रिंकस में डाला जाता है, इस तरह मेदे में तेज़ाबियत पैदा होती है ह़ज़्म का अमल सुस्त पड़ जाता है और ग़िज़ा देर से ह़ज़्म होती है।कोल्ड्रिंकस में गंदी गैस होती हैं
कोल्ड्रिंकस में गंदी गैस," कार्बन डाई ऑक्साइड" शामिल की जाती है जिससे बुलबुले उठते हैं। इससे आरज़ी तौर पर लज़्ज़त ज़रूर महसूस होती लेकिन येह बुलबुले उस गंदी और ज़हरीली गैस के हैं जिसे हम साँस के ज़रिये बाहर निकालते हैं। इस ख़तरनाक गैस को कोल्ड्रिंकस के ज़रिये बदन के अन्दर ले जाना एक ग़ैर फ़ितरती( UNNATURAL) अमल है।कोल्ड्रिंक पीने क मुक़ाबल!
एकबार India में कोल्ड्रिंक पीने का मुक़ाबल हुआ, जिसमें आठ बोतलें पीने वाला मुक़ाबला जीत गया। मगर ज़िन्दगी की बाज़ी हार गया क्योंकि कुछ ही देर बाद वोह मौत का शिकार हो गया! उसकी मौत का सबब येह बताया गया कि उसने जिस्म में "कार्बन डाई ऑक्साइड" बहुत ज़्यादा मिक़दार(मात्रा) में जमा हो गयी थी।
छ: तरह के कैंसर
स्याही माइल मशरूबात यानी कोल्ड्रिंकस में कैफ़ीन (CAFFEINE) शामिल होती है। इससे शुरू में चुस्ती पैदा होती है और बाद में सुस्ती आ जाती है कैफ़ीन के ग़ैर ज़रूरी
और ज़्यादा स्तेमाल से ह़ाफ़िज़ा कमज़ोर होता और ग़ुस्सा बढ़ता है दिल की धड़कन की बे क़ाइदगी और हाई ब्लड-प्रेशर का मर्ज़ जन्म लेता है, पेट के अन्दर जख़्म बनते हैं, कोल्ड्रिंकस पीने वालों के बच्चों में पैदाइशी ख़ामियाँ भी देखी गईं हैं ( मिसालके तौर पर बच्चे का बहुत ज़्यादा कमज़ोर,पागल या अन्धा होना या इसके हाथ पाँव वग़ैरा बेकार होना वग़ैरा वग़ैरा।)
एक बहुत बड़ी तशवीशनाक बात येह भी है कि कोल्ड्रिंकस के स्तेमाल से 6 क़िस्म के कैंसर पैदा होते हैं जिनमें पेट और मसाने के कैंसर की मिक़दार (मात्रा) ज़्यादा है। कोल्ड्रिंकस पीने वाले बच्चों के जिस्म से कैल्शियम ज़्यादा मिक़दार (मात्रा)में खारिज होता है।(कैल्शियम की कमी हड्डियों वग़ैरा के लिए सख़्त नुक़सान-देह होती है ।)
साँस की तकलीफ़ और घबराहट
कोल्ड्रिंकस जल्द ख़राब ना हो इस लिए इसमें "Sulphur oxide" या " Sodium benzoic acid "शामिल किया जाता है।इन दोनों कैमिकलज़ के स्तेमाल से साँस की तकलीफ़ स्किन पर ख़ारिश और घबराहट की बिमारीयाँ पैदा होती हैं। कोल्ड्रिंकस में कीमयावी रंग भी डाले जाते हैं जिनके अपने नुक़सानात हैं।चीनी मीठा ज़हर है
दुनिया-भर में चीनी का स्तेमाल होता है, जिस्में इन्सान को एक मख़सूस मिक़दार (मात्रा) में इसकी ज़रूरत होती है जो कि रोटी,चावल,सब्ज़ी और फलों वग़ैरा के ज़रिये उमूमन पूरी हो जाती है, इसके लिए"सफ़ेद चीनी" या उसकी डिशें स्तेमाल करना ज़रूरी नहीं होता, हाँ जो( Low Sugar) का मरीज़ हो उसे डाॅक्टर की हिदायात के मुताबिक़ शूगर का स्तेमाल करना होगा। उसूल येह है कि कोई भी चीज़ अगर ज़रूरत से ज़्यादा स्तेमाल की जाए तो वोह नुक़सान पंहुचाती है, आजकल चीनी का स्तेमाल ज़रूरत से ज़्यादा होने लगा है और ग़ैर ज़रूरी अशिया के ज़रिये चीनी बदन में उंडेली जा रही है।
मिसाल के तौर पर
बोतलों, आइसक्रीमों,शरबतों,मिठाईयों,टाफ़ियों,मीठी डिशों वग़ैरा का स्तेमाल उमूमन ग़िज़ाअन नहीं, इज़ाफ़ी तौर पर मह़ज़ तफ़रीह़न किया जाता है और ऐसा करना अपने ही हाथों से अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ा चलाने के मुतारादिफ़ है।
चीनी के सबसे ज़्यादा स्तेमाल का सबसे बड़ा नुक़सान येह है "इन्सुलिन" की मिक़दार ख़ून में बढ़ा देती है जिससे "ग्रोथ हार्मोन्स" यानी वोह हार्मोन्स जो जिस्म की नशो-नुमा और बढ़ौत्री के ज़िम्मेदार होते हैं उनकी पैदा-वार रुक जाती है, जिससे जिस्म के दिफ़ाई ( यानी बीमारीयों से मुक़ाबला करने का) निज़ाम कमज़ोर हो जाता है। इन्सुलिन जिस्म में चिकनाई का ज़ख़ीरा करने की सलाहियत बढ़ा देती है जिससे बदन का वज़्न बढ़ जाता और मोटापा आता है।
चीनी यानी शूगर के नुक़सानात
गन्ने से जब "रिफ़ाइन शूगर" तैयार की जाती है तो उसमें मौजूद तमाम अहम अजज़ा अलैह्दा कर दिये जाते हैं जिनकी बदने इन्सानी को ज़रूरत होती है। मिसाल के तौर पर प्रोटामिन्ज़, नमकीय्यात, प्रोटीन, एन्ज़ाइम्ज़ वग़ैरा लिहाज़ा कहा जाता है,"जो कुछ चीनी की शकल में हम स्तेमाल करते हैं, वोह सिवाय हमारे निज़ामे-इनहिज़ाम को तबाह करने के अपने अन्दर और कुछ नहीं रखती!"सफ़ेद चीनी जो कि उमूमन बाज़ारों में दस्तयाब होती है, इसकी ख़ास ग़िज़ाई अहमियत नहीं, बल्कि शूगर के माहिरीन इसे कैंसर के लिए ईंधन क़रार देते हैं।
अगर आप चीनी का ज़्यादा स्तेमाल करते हैं तो इसका मतलब है कि "विटामिन सी को ख़ून के सफ़ेद ख़िलयों (WHITE CELLS) में जाने से रोक देते हैं और इस तरह से आप ख़ुद अपना दिफ़ाई निज़ाम कमज़ोर कर रहे होते हैं।
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete