सुना सुनाया इलाज ख़तरनाक साबित हो सकता है ( The healing of the treatment can prove to be dangerous )
सुना सुनाया इलाज ख़तरनाक साबित हो सकता है
suna sunaya ilaj |
इलाज के लिए किसी एक तबीब को मुसतक़िलन मह़फ़ूज़ कर लेना चाहिए, वोह आपके तबई मिजाज़ से वक़िफ़ रहेगा तो इलाज जल्द हो सकेगा और मन्फ़ी असरात के ख़तरात भी कम रहेंगे, वरना ख़्वाम-ख़्वाह अलग-अलग तबीबों के पास जाएंगे तो वोह नए-नए नुस्ख़े आज़माएंगे, इस तरह आपका पैसा और वक़्त दोनों बर्बाद होते रहेंगे।
इसी तरह किताबों या लोगों के बताये हुए नुस्ख़ों के मुताबिक़ इलाज करना भी ख़तरनाक साबित हो सकता है, कि यह मसल मशहूर है "नीम ह़कीम ख़तरे जान" साथों-साथ यह भी ख़ास ताकीद है कि हमारी इस वेबसाईट पर दिया हुआ कोई भी नुस्ख़ा अपने डाॅक्टर की सलाह के बग़ैर स्तेमाल ना किया जाए भले ही यह नुस्ख़ा उसी बीमारी के लिए हो जिससे आप दोचार हों।
इसकी बुनियादी वजह यह है कि लोगों की तबई कैफ़ियात अलग-अलग होती हैं, एक ही दवा किसी के लिए आबे-ह़यात का काम दिखाती है तो किसी के लिए मौत का पयाम लाती है। लिहाज़ा आपकी जिस्मानी कैफ़ियात से वक़िफ़ आपका ख़ास डाॅक्टर ही बेहतर तय कर सकता है कि आपको कौनसा नुस्ख़ा मुवाफ़िक़ हो सकता है और कौनसा नहीं। क्योंकि किताब में इलाज के त़रीक़े बयान करना और है जबकि किसी ख़ास मरीज़ का इलाज करना और।
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कौनसी दवा किसके लिए नुक़सान देह है ?
मैंने एलोपैथिक के अदवियह के शोअबे से वाबस्ता अपने मरह़ूम बड़े भाईजान से सुना था कि जब ( PENICILLIN ) का इन्जेक्शन नया-नया ईजाद हुआ था तो लोगों को इससे काफ़ी शिफ़ाएं मिल रही थीं, मगर बाज़ मरीज़ इसी के मन्फ़ी असर ( REACTION ) के सबब फ़ौत ( मर) भी हो जाते थे।
शूगर के मरीज़ों के लिए शकर और मीठी चीज़ों वाले फ़िशारुद्दम ( हाई ब्लड प्रेशर ) वालों के लिए नमक और चिकनाहट वाले और दिल के मरीज़ों के लिए घी और तेल वाली दवाओं के नुस्ख़े नुक़सानदेह साबित हो सकते हैं।
इसी तरह बाज़ लोगों को खजूरों, छुहारों से मूंह में छाले पड़ जाते हैं और किसी को दूध हज़्म नहीं होता।
क्या हर मरीज़ के लिए शहद फ़ायदेमन्द है ?
शहद ही को ले लिजीए हालांकि इसमें शिफ़ा है: ताहम बाज़ लोगों के वुजूद इसको बर्दाशत नहीं कर पाते। चुनान्चे इमाम अह़मद रज़ा ख़ान عليه رحمة الرحمن फ़तावा रज़ावीय्यह जिल्द 25 सफ़ह़ 88 पर रद्दुल-मुह़तार के ह़वाले से नक़्ल फ़रमाते हैं: जिन मिज़ाजों ( यानी तबियतों ) पर सफ़रा ग़ालिब होता है शहद उन्हें नुक़सान करता है बल्कि बारहा बीमार कर देता है बावजूद इसके कि वोह (यानी शहद ) दलील-ए-क़ुरआनी से शिफ़ा ( ۵۰ص ۱۰ ردالمحتار ج) है।
इमाम अह़मद रज़ा ख़ान عليه رحمة الرحمن सफ़रा की वज़ाह़त करते हुए फ़रमाते हैं:" वोह ज़र्द ( यानी पीला ) पानी कि पित्ते में होता है जिसको सफ़रा कहते हैं।"
( فتاوٰرضویہ ج ۲۰ ص ۲۳۷ ) मिरात जिल्द 6 सफ़ह़ 218 पर दिये हुये मुफ़स्सिरे शहीर ह़कीमुल-उम्मत ह़ज़रत मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान عليه رحمة الحنّان के फ़रमान का ख़ुलासा है: "तिब में शहद को दस्त आवर ( यानी दस्त लाने वाला ) माना गया है लिहाज़ा दसतों ( यानी डायरिया, लूज़मोशन ) में शहद स्तेमाल ना किया जाए।"
( فتاوٰرضویہ ج ۲۰ ص ۲۳۷ ) मिरात जिल्द 6 सफ़ह़ 218 पर दिये हुये मुफ़स्सिरे शहीर ह़कीमुल-उम्मत ह़ज़रत मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान عليه رحمة الحنّان के फ़रमान का ख़ुलासा है: "तिब में शहद को दस्त आवर ( यानी दस्त लाने वाला ) माना गया है लिहाज़ा दसतों ( यानी डायरिया, लूज़मोशन ) में शहद स्तेमाल ना किया जाए।"
ग़ैर तबीब को इलाज में हाथ डालना ह़राम है
दोस्तों! बाज़ लोग ह़क़ीक़ी मानों में बा क़ाइदा डाॅक्टर या ह़कीम ना होने के बावजूद क्लीनिक या मतब खोल कर मरीज़ों का इलाज शुरू कर देते हैं ऐसा करना क़ानून जुर्म होने के साथ-साथ शरअन भी मम्नूअ हैं नीज़ एक फ़न का माहिर दूसरे फ़न के त़रीक़े-इलाज के मुताबिक़ मरीज़ों पर तजरिबात ना करें
मिसाल के तौर पर एलोपैथी या होम्योपैथी या बायोकैमि वाले डाॅक्टरज़ बाक़ाइदा सीखे बग़ैर एक दूसरे के शोबे की दवाओं से और यूनानी तिब ( ह़िकमत ) के मुताबिक़ इलाज ना करें।
इसी तरह जो-जो ह़कीम साह़िबान बाक़ाइदा डाॅक्टर नहीं हैं वोह भी जड़ी बूटियों के साथ-साथ डाॅक्टरी दवाएं मरीज़ों पर ना आज़माएं।
मेडिकल स्टोर वाले भी अपनी-अपनी समझ के मुताबिक़ मरीज़ों को दवाएं ना दिया करें। और यूं भी बग़ैर डाॅक्टरी पर्चे के दवा न बेचा करें। बाज़ लोगों की आदत होती है कि जहां किसी मरीज़ से मुलाक़ात हुई झट कोई ना कोई दवा या नुस्ख़ा बता देते हैं! याद रखिये! जो माहिर तबीब ना हो उसे मरीज़ के इलाज में हाथ डालना सवाब का काम नहीं बल्कि ह़राम और जहन्नम में लेजाने वाला काम है। अगर कोई ऐसा ग़ैर माहिर तबीब क्लीनिक या दवाख़ाना खोलकर मरीज़ों का इलाज करने बैठ गया हो तो फ़ौरन येह नाजायज़ काम बन्द करना ज़रूरी है।
मेडिकल स्टोर वाले भी अपनी-अपनी समझ के मुताबिक़ मरीज़ों को दवाएं ना दिया करें। और यूं भी बग़ैर डाॅक्टरी पर्चे के दवा न बेचा करें। बाज़ लोगों की आदत होती है कि जहां किसी मरीज़ से मुलाक़ात हुई झट कोई ना कोई दवा या नुस्ख़ा बता देते हैं! याद रखिये! जो माहिर तबीब ना हो उसे मरीज़ के इलाज में हाथ डालना सवाब का काम नहीं बल्कि ह़राम और जहन्नम में लेजाने वाला काम है। अगर कोई ऐसा ग़ैर माहिर तबीब क्लीनिक या दवाख़ाना खोलकर मरीज़ों का इलाज करने बैठ गया हो तो फ़ौरन येह नाजायज़ काम बन्द करना ज़रूरी है।
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